कलंक नहीं मैं नारी हूं,
सौ लोगों पर भारी हूं।।
आज़मा के देखो तुम,
मुझे ना ऐसे फेको तुम,
ज़रूरत तुम्हारी सारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
घर आँगन को मैं मेहकाऊं,
वंश तुम्हारा मैं चलाऊं,
दिन और रात की हारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
क्यों बोझ मान के पालोगे,
क्यों पेट में ही मारोगे,
क्यों मैं एक बेचारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
एक मां, बेटी और बहु बनी,
लक्ष्मी के रुप में रही धनी,
फिर भी दुनियां की मारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।
सौ लोगों पर भारी हूं।।..
सौ लोगों पर भारी हूं।।
आज़मा के देखो तुम,
मुझे ना ऐसे फेको तुम,
ज़रूरत तुम्हारी सारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
घर आँगन को मैं मेहकाऊं,
वंश तुम्हारा मैं चलाऊं,
दिन और रात की हारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
क्यों बोझ मान के पालोगे,
क्यों पेट में ही मारोगे,
क्यों मैं एक बेचारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।।
एक मां, बेटी और बहु बनी,
लक्ष्मी के रुप में रही धनी,
फिर भी दुनियां की मारी हूं।
कलंक नहीं मैं नारी हूं।
सौ लोगों पर भारी हूं।।..
Awesome ma'am
ReplyDeletethnx
Delete👌👌👌👌😍😍😍😍
ReplyDeletedhnywaad....
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